छत्रपति संभाजी महाराज की जीवनी – वीरता, विद्वत्ता और बलिदान की मिसाल (Sambhaji Maharaj Biography in Hindi – A Tale of Bravery, Wisdom & Sacrifice)

छत्रपति संभाजी महाराज मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक थे और छत्रपति शिवाजी महाराज के सुपुत्र थे। वे एक महान योद्धा, विद्वान, धर्मरक्षक और राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने मुगल सम्राट औरंगज़ेब के खिलाफ डटकर संघर्ष किया और अंत में अपने धर्म और स्वराज्य के लिए वीरगति को प्राप्त हुए।

🔹 प्रमुख जानकारी (Key Facts about Sambhaji Maharaj)

तथ्य विवरण
पूरा नाम छत्रपति संभाजी भोंसले
जन्म 14 मई 1657, पुरंदर किला, पुणे
माता सईबाई भोंसले
पिता छत्रपति शिवाजी महाराज
पत्नी येसुबाई भोंसले
पुत्र शाहू महाराज
शासनकाल 1681 से 1689 ई.
मृत्यु 11 मार्च 1689, तुलापुर
मृत्यु का कारण औरंगज़ेब द्वारा यातना के बाद हत्या
प्रसिद्धि मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति, धर्मरक्षक योद्धा

🔸 प्रारंभिक जीवन और शिक्षा (Early Life and Education)

छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुणे जिले के पुरंदर किले में हुआ था। उनकी माता सईबाई और पिता शिवाजी महाराज थे। संभाजी बचपन से ही असाधारण बुद्धि और तेजस्वी स्वभाव के थे। वे बहुभाषाविद थे और उन्होंने संस्कृत, मराठी, हिंदी, फारसी, तेलुगु और कन्नड़ जैसी भाषाओं में निपुणता प्राप्त की थी।

उनकी शिक्षा तुलजापुर और बाद में बनारस में हुई, जहाँ उन्हें धर्म, राजनीति, युद्धकला और ग्रंथ अध्ययन में प्रशिक्षित किया गया। बाल्यकाल से ही उनमें नेतृत्व क्षमता और वीरता के लक्षण दिखाई देने लगे थे।


🔸 विद्वता और साहित्य प्रेम (Scholarship and Literary Interests)

संभाजी महाराज केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि एक विद्वान कवि भी थे। उन्होंने संस्कृत में कई ग्रंथों की रचना की, जिनमें प्रमुख हैं:

  • बुद्धिभूषण – एक नैतिक और राजनीतिक ग्रंथ

  • नायक मीमांसा – नेतृत्व और नीति पर आधारित ग्रंथ

उनके ग्रंथों में नीति, धर्म और शासन के सिद्धांत मिलते हैं। वे धार्मिक सहिष्णुता और संस्कृति के संरक्षक थे।


🔸 संभाजी महाराज का राज्याभिषेक (Coronation of Sambhaji Maharaj)

1680 में शिवाजी महाराज के निधन के बाद, सत्ता संघर्ष हुआ। समर्थ रामदास जैसे गुरुजनों की प्रेरणा और समर्थकों के सहयोग से 1681 में संभाजी महाराज ने विधिवत छत्रपति की उपाधि धारण की। वे मराठा साम्राज्य के दूसरे राजा बने।


🔸 शासनकाल की चुनौतियाँ (Challenges during His Rule)

संभाजी महाराज का शासनकाल मुश्किलों से भरा था। उन्हें न केवल मुगलों से युद्ध लड़ना पड़ा, बल्कि अपने दरबार के कुछ विश्वासघातियों और आंतरिक विरोधों से भी जूझना पड़ा। औरंगज़ेब ने दक्षिण भारत में अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए जबरदस्त आक्रमण किया, पर संभाजी ने वीरता से मोर्चा संभाला।


🔸 प्रमुख युद्ध और कूटनीति (Major Battles and Diplomacy)

संभाजी महाराज ने अनेक शक्तिशाली शत्रुओं से युद्ध किया, जिनमें प्रमुख थे:

  • मुगल साम्राज्य: औरंगज़ेब के खिलाफ निरंतर संघर्ष

  • सिद्धी और अadilshahi सेनाएँ

  • पुर्तगाली और ब्रिटिश उपनिवेशवादी ताकतें

संभाजी महाराज की रणनीति, साहस और सैन्य कुशलता के कारण मराठा साम्राज्य लगातार संघर्ष करते हुए भी जीवित रहा।


🔸 धार्मिक सहिष्णुता और नीति (Religious Tolerance and Administration)

संभाजी महाराज धार्मिक सहिष्णु थे। उन्होंने हिन्दू धर्म की रक्षा की, लेकिन अन्य धर्मों के लोगों के साथ भी न्याय और समानता का व्यवहार किया। वे मूर्तिपूजा, वेद, शास्त्र और धर्मिक संस्थाओं के संरक्षक थे।

उनकी नीतियाँ आज भी “राजधर्म” का उदाहरण मानी जाती हैं।


🔸 विश्वासघात और गिरफ्तारी (Betrayal and Capture)

1689 में, संभाजी महाराज को अपने ही एक सरदार गणोजी शिर्के द्वारा धोखा देकर औरंगज़ेब की सेना को सूचना दी गई। रायगढ़ से निकट तुलापुर में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। औरंगज़ेब ने उन्हें इस्लाम कबूल करने के लिए प्रलोभन और यातनाएँ दीं।

लेकिन संभाजी महाराज ने “स्वधर्म” नहीं छोड़ा और “जय भवानी, जय शिवाजी” कहते हुए अंत तक अडिग रहे।


🔸 वीरगति और बलिदान (Martyrdom of Sambhaji Maharaj)

11 मार्च 1689 को, संभाजी महाराज को औरंगज़ेब के आदेश पर अमानवीय यातनाएँ देकर मार दिया गया। उनकी आँखें निकाली गईं, जीभ काट दी गई और शरीर के टुकड़े कर दिए गए। उनका यह बलिदान हिंदू धर्म, स्वराज्य और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए अमर हुआ।


🔸 संभाजी महाराज की विरासत (Legacy of Sambhaji Maharaj)

संभाजी महाराज भारत के इतिहास के सबसे वीर, साहसी और बलिदानी शासकों में से एक हैं। उनकी प्रेरणादायक गाथा आज भी भारत के युवाओं को धर्म, संस्कृति और देश के लिए समर्पण का संदेश देती है।

  • महाराष्ट्र में उनके नाम पर कई स्मारक और शिक्षण संस्थान स्थापित हैं

  • उनकी जीवनगाथा पर फिल्में, नाट्यकृतियाँ और ग्रंथ रचे गए हैं

  • संभाजी ब्रिगेड जैसी कई सामाजिक संस्थाएँ उनके विचारों पर काम कर रही हैं


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🔸 निष्कर्ष (Conclusion)

छत्रपति संभाजी महाराज न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि एक आदर्श राजा, संस्कृत विद्वान और भारत माता के सच्चे सपूत थे। उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर यह सिद्ध किया कि धर्म और मातृभूमि के लिए मरना भी एक गौरव है।

उनकी वीरगाथा सदैव हमें प्रेरित करती रहेगी –
“जय संभाजी महाराज! जय शिवाजी महाराज!”

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